Sunday 27 August 2017

एक ही दिन हो संवत्सरी - आचार्य श्री महाश्रमण जी

तमाम पंथ हो जाए अगर एकमत
तो सफलता मिलेगी शत-प्रतिशत
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एक ही दिन हो संवत्सरी: मैत्री दिवस पर आचार्य श्री महाश्रमणजी की मैत्री भरी सराहनीय पहल, सचमुच में जैन एकता की और बढ़ते कदम।
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जैन धर्म मे अनेक मत,पंथ,गच्छ व सम्प्रदाय हैं,अनेक पंथ व सम्प्रदाय होना कोई आपत्ति का विषय नही हैं। आपत्ति जैन एकता में बाधक बनने वाली असहमति की है। और इस मुद्दे पर प्रदर्शित होने वाले मत-मतांतर की है। जब संथारे मुद्दे पर देश भर के जैनों ने पुरजोर रूप से एकता का परिचय दिया था तो उम्मीद की एक किरण जगी थी कि अब तमाम जैनों में मुख्य-मुख्य मुद्दों पर एकता अवश्य प्रदर्शित हो पाएगी। लेकिन जब इस वर्ष पर्युषण पर्व सम्पन्न हुआ तो पूर्व वर्षों की भांति संवत्सरी अलग-अलग ढंग से यानी 'अपनी ढपली अपनी राग' के अनुसार ही मनी। जो कि परिणाम वही 'ढांक के तीन पांत' वाली कहावत को चरितार्थ करने जैसे ही थे। विडंबना यह हैं कि हर पर्युषण पर्व पर जैन समुदाय में संवत्सरी हर बार अलग-अलग रूप से मनाई जाती हैं। संख्या की दृष्टि से एक छोटे से धर्म संघ में इतनी मत भिन्नता क्या उचित है ? क्या यह सम्भव नही की जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के धर्म गुरु आपस मे सामंजस्य बिठा कर संवत्सरी को एक ही दिन मनाएं ? भारतवर्ष की वर्ष 2001 की जनगणना में जैन धर्मावलंबियों की आबादी लगभग 42 लाख और वर्ष 2011 की जनगणना में 44 लाख के करीब थी। जो कि 04,2 व 05.4 के आस-पास हैं।  हालांकि अपुष्ट आंकड़ो से जैनों की संख्या भारत भर मे एक करोड़ से भी ज्यादा हैं। इतनी कम संख्या में होने के बावजूद हम दिगम्बर,श्वेताम्बर, मूर्ति पूजक, तेरापंथी, स्थानकवासी, के रूप में बंटे हुए हैं। बेशक अलग सम्प्रदाय हो, अलग पंथ हो, अलग गच्छ हो, इसमें आपत्ति जैसा कुछ भी नही हैं। यहां तक उपासना पद्दति में भी भिन्नता भी कोई एतराज का मुद्दा नही है। समस्या जैन एकता नही हो पाने की हैं। परम सन्तोष का विषय यह हैं कि हमारे जैन धर्म के विभिन्न पंथ व मत के आचार्य जैन एकता की दिशा में अंतर्मन से प्रयत्न करते नजर आ रहे है। इस मुद्दे पर वे आपस मे संवाद भी साध रहे हैं। आज जब कुछ पंथों व सम्प्रदायों का क्षमापना पर्व था तो सचमुच में यह मतभेद भुलाने की ही वेला थी व एक-दूसरे सम्प्रदाय के निकट आने की ही बेला थी। क्योंकि पर्युषण पर्व जैन एकता का परिचायक पर्व भी है। जैन एकता की उम्मीद की किरण आज उस समय बलवती हुई जब कोलकोता में चातुर्मासार्थ विराजमान तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जैन एकता की पृष्ठ भूमि को तैयार करते हुए संवत्सरी एक ही तिथि को मनाने हेतु अपने सम्प्रदाय की और से सकारत्मक पहल की। परम श्रद्धेय आचार्य श्री ने क्षमापना के पुनीत अवसर पर मैत्री के भाव प्रदर्शित करते हुए अपने सन्देश में साधु मार्गी संघ के आचार्य श्री रामलाल जी म.सा तथा श्रमण संघ के आचार्य ड़ॉ श्री शिवमुनि जी म,सा के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए संवत्सरी पर्व एक ही तिथि को मनाने हेतु निवेदन किया, आचार्य श्री महाश्रमण जी ने दोनों आचार्यों को संवत्सरी एक तिथि को मनाने सम्बन्धी प्रारूप तैयार करने हेतु विनम्र सुझाव भी दिया और अपना विचार प्रकट करते हुए बताया कि अगर विशेष कोई बाधा नही हुई तो जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ की भी इस निर्णय में सहमति बन जाएगी। सचमुच में अपने आप मे ये एक बहुत बड़ी एंव महत्वपूर्ण पहल हैं। उम्मीद करते हैं कि अलग-अलग पंथों व सम्प्रदायों के आचार्य, धर्मगुरु आदि आचार्य श्री महाश्रमण जी की इस अद्वितीय पहल पर अपनी सह्रदयता भरी सहमति प्रदान कराएंगे। इस तरह की आपसी सहमति बन जाने से काफी बड़ी सफलता मिल सकती हैं। उसके जैन धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों व पन्थो आदि में भी इस मुद्दे पर सहमति बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। अगर ऐसा हो जाता है तो जैन एकता के क्षेत्र में ये बहुत बड़ी उपलब्धि एंव कामयाबी होगी। ये उल्लेखनीय हैं कि अतीत में तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्री तुलसी ने भी जैन एकता के लिए अथक प्रयास किए थे। गुरुदेव श्री तुलसी ने जब तक एकता स्थापित ना हो तब तक शक्कर उपयोग में लेने के त्याग कर दिए थे, जैन एकता की अनवरता बनाये रखने हेतु आचार्य श्री महाश्रमण जी निरन्तर रूप से प्रयासरत हैं। सितम्बर 2014 में दिल्ली में ऐसी ही एक सकारत्मक पहल हो चुकी हैं। उक्त अवधि में तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य श्री महाश्रमण जी, श्रमण संघ के आचार्य ड़ॉ श्री शिवमुनि जी, दिगम्बर मुनि श्री तरुण सागर जी तथा मूर्ति पूजक सम्प्रदाय के  आचार्य श्री अभयदेव जी की दिल्ली में आपसी सौहार्दपूर्ण भेंट भी जैन एकता की दिशा में एक बढ़ता हुआ कदम था। आज क्षमापना के अवसर पर परम श्रद्धेय आचार्य श्री महाश्रमण जी के और से एक अनूठी पहल यह भी रही कि साधुमार्गी संघ के आचार्य श्री रामलाल जी म.सा व श्रमण संघ के आचार्य ड़ॉ श्री शिवमुनि जी को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्म संघ की और से 'आध्यात्म ज्योति' अलंकरण से अलंकृत करने की घोषणा की गई, जो कि साम्प्रदायिक सौहार्द की एक अदभुत एंव प्रेरक मिसाल है। ऐसे प्रयास अनवरत जारी रहने चाहिए। क्योंकि धर्मगुरुओं की आपसी सहमति को श्रावक समाज का सदैव तहे दिल से समर्थन रहा हैं, और रहेगा भी।

मशहूर कवि दुष्यंतकुमार ने ठीक ही कहा है कि..

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नही हो सकता
एक पत्थर तबियत से तो उछालो यारों....
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मौलिक विचार-
गणपत भन्साली, सूरत
9426119871
Ganpatbhansalijasol@gmail.com

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