(संकलित)-
लेखको का ब्लॉग
उक्त ब्लॉग बुद्धिजीवी व लेखको के विचार है उक्त प्रकाशन से हमारी सहमति हो जरूरी नहीं लेखको के स्वयम के विचार है -- उत्तम जैन (विद्रोही )
Tuesday 4 September 2018
लघुकथा - माँ बेटा
(संकलित)-
Saturday 1 September 2018
चिंतन प्रवाह 254 - बनेचन्द मालू
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चिन्तन प्रवाह (२५४)
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सोच का फर्क
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कोई कहता है फलां ने मुझे
धोखा दिया, मुझे दुःख हुआ।
वही वाकिया दूसरे के साथ भी
हुआ,
उसके साथ भी दगा हुआ।
कहा जो होना था हुआ, वह दुःखी
नहीं हुआ।
क्योंकि उसने सोच बदल लिया।
उसकी सोच है बिलकुल सही।
दुःख इसलिए होता है क्योंकि
हम मान कर चलते हैं हमारे साथ
अच्छा ही अच्छा होगा,
और वह वश की बात नहीं ।
इसलिए जब कुछ बुरा होता है
तो मन में कुछ बाकी नहीं।
तो विश्लेषण करें,दुःख इसलिए
नहीं हुआ कि हमारे साथ हुआ दगा।
दुःख इसलिए हुआ कि हम मान
कर चलते हैं,
हमारे साथ कभी बुरा नहीं होगा।
यहीं हम भूल करते हैं।
हम ऐसी दुनिया नहीं बना सकते,
जहाँ
हमें कोई चोट न पहुँचा सके।
इस जगत में हरेक के साथ अच्छा
बुरा कर्मानुसार सब होगा।
हमें हमारी सोच को स्वीकारात्मक
बना कर रखना होगा।
यदि हम प्रभावित हो कर यूं ही
विचलित होते रहें,
तो जीवन की नौका यूं ही
डगमगती रहेगी।
कभी इससे,कभी उससे चोट खाती
रहेगी।
यह सोच बदलें, आत्मबोध करें कि
‘कभी जब बुरा होता है तो वह
संयोग होता है।
उसकी अनुभूति की आग मुझे नहीं
जला सकती
परिस्थितियाँ मुझे नहीं हिला
सकती।’
यही सकारात्मक सोच जीवन का
सच्चा आधार है।
जम जाए यह गहन, तो फिर मन
विचलित नहीं होगा,
हर परिस्थिति में आनंद अपार है।
हजारों गुलाब हैं राहों में,
पर काँटे भी हैं बे हिसाब।
इसी का नाम है जिन्दगी,
चलते रहिए जनाब।
••••••••••••••• बनेचन्द मालू
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Friday 24 August 2018
आचार्य श्री तुलसी से लेकर वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण जी के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा हैं हरियाणा के सरदार सोहनसिंह जी मक्कड़ की, हर चातुर्मास में पहुंचते हैं धर्म-आराधना हेतु
गुरुवार 23 अगस्त, माधवरम, चेन्नई ( आलेख - गणपत भंसाली )
भारत अनेक पन्थो,मतों व सम्प्रदायों का देश हैं, नाना प्रकार के धर्मो की ये एक सुंदर बगिया है जहां विभिन्न सम्प्रदाय रूपी रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं, यहां अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं, अनेक धर्म ऐसे हैं जिनके अनुयायी बनने हेतु कोई विशेष औपचारिकताएं नही होती, ना ही अपना मूल धर्म छोड़ना पड़ता है,बस अपने परम् श्रद्धेय गुरु के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा के भाव जागृत हो जाने चाहिए, में इन दिनों चेन्नई स्थित माधवरम में चातुर्मासार्थ विराजमान शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के दर्शन निमित पहुंचा हुआ हूँ, चेन्नई रेलवे स्टेशन के प्रतिरूप आकार में निर्मित विशाल प्रवचन पांडाल "महाश्रमण समवसरण" में प्रातःकालीन प्रवचन श्रवण कर ही रहा था कि मेरी नजर केशरिया रंग की पगड़ी पहने एक बुजुर्ग सरदार जी पर पड़ी, जो कि प्रवचन श्रवण के दौरान मुंह पर रुमाल रूपी मुँहपट्टी लगाए हुए थे, मेरे मन मे उनसे रूबरू होने की जिज्ञासा जगी,जैसे ही प्रवचन सम्पन्न हुआ और श्रद्धालुओं का कारवां पांडाल से बाहर की और कूच करने लगा तो में शीघ्रता के साथ सरदार जी के समीप पहुंच गया, और उनसे अभिवादन कर कुछ जानने की अपनी मंशा व्यक्त की, तो उन्होंने सहर्ष जानकारी देने की अपनी सहमति प्रदान की, जब मैंने उनसे नाम,शहर, व्यवसाय व तेरापंथ धर्म संघ के प्रति जुड़ाव सम्बन्धी विगत जाननी चाही,तो उन्होंने बताया कि उनका नाम सरदार सोहनसिंह मक्कड़ है, वे हरियाणा के सिरसा स्थित मंडी कालांवाली के निवासी है, वे पिछले 18 वर्षों से तेरापंथ धर्म संघ से जुड़े हुए हैं, वे बताते हैं कि करीब 18 वर्ष पहले आचार्य श्री तुलसी नेतृत्व काल मे मुनि श्री रोशन लाल जी स्वामी व मुनि श्री सम्भवकुमार जी आदि सन्त हमारे मंडी कालांवाली चातुरमासार्थ पधारे हुए थे, तब उनके दर्शन करने का संयोग हुआ था, उनके प्रवचन सुनने हेतु जाने का सिलसिला नियमित रूप से प्रारम्भ हुआ, फिर गुरुदेव के प्रति श्रद्धा प्रगाढ़ होती चली गई, एक दिन गुरुवर के प्रति असीम श्रद्धा ने मुझे लाडनू की यात्रा करवा दी, श्री सोहनसिंह जी आंखों देखी का वर्णन करते हुए बताते हैं कि लाडनू के प्रवचन पांडाल में प्रवचन सम्पन्न होते ही गुरुदेव की दिव्य दृष्टि मुझ पर पड़ी और मुझे निकट पहुंचने हेतु इंगित किया, गुरुदेव की इस अनुकम्पा से मानो में तो निहाल ही हो गया, गुरुदेव के निकट पहुंचा और आप श्री ने मेरे बारे में जानकारी ली, मैंने सारी विगत बताई, कि किस तरह मेरा जुड़ाव इस धर्म संघ से हुआ, कभी कपड़े के कारोबारी रहे 76 वर्षीय श्री सोहनसिंह जी मक्कड़ इन दिनों निवृत है व नित्य गुरुद्वारा पहुंच कर धर्म-आराधना में लीन रहते हैं, वे अपने शहर कालांवाली में प्रत्येक शनिवार को गुरु इंगित अनुसार सामयिक आराधना करना नही भूलते, श्री सोहन सिंह जी ने बताया कि वे इन 18 वर्षों में आचार्य श्री तुलसी, आचार्य श्री महाप्रज्ञजी तथा वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमण जी के जहां-जहां चातुर्मास हुए हैं वहां-वहां वे कोलकोता व गोहाटी चातुर्मास को छोड़ सभी जगह पहुंचे हैं, व गुरुओं के दर्शन आराधना में लीन रहे हैं। वे कहते हैं कि अपने मूल धर्म से जुड़े रहते हुए भी आप अन्य धर्म की खूबियों व अच्छाइयों को अंगीकार कर सकते हैं, धन्य है श्री सोहन सिंह जी जैसे प्रगाढ़ श्रावक...
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(गुरुवार 23 अगस्त, माधवरम, चेन्नई )
Sunday 1 July 2018
मशला और मशाला
सत्तर,भृष्टाचार,भूख,भय,रोजगार,राम मंदिर विवाद,आधार- निराधार,किसान को लागत का डेढ गुना दाम,पूर्व सैनिकों को ओ आर ओ पी आदि जेसे कयी कयी ज्वलंत मशले थे देश में/चार साल बीतते बीतते सभी मशले मशालेदार लफ्फाजी हो गये। समान अधिकार तीन तलाक तक सिमट गया,धारा तीन सौ सत्तर पहले गठबंधन की गांठ बंधी और फिर खुल भी गयी,भृष्टाचार प्रशासन से ईवीएम तक हर जगह वाइरस जेसा हो गया,भूख पेट की तो शांत हुई नहीं, अलबत्ता मंहगाई और सत्ता की बढती ही चली गयी,कि गोआ और मणिपुर का जनादेश जौङतोङ की भेंट चढ गया,कर्नाटक का नाटक भी चला,दो विधायक जीतने वाला दल सूबे की सरकार बनाने लग गया। रोजगार का वादा दो करोङ हर साल पूरा होने की जगह नोटबंदी की भ्रुण हत्या की भेंट चढ गया,करोङो नये बेरोजगार पैदा हो गये। डीजल-पैट्रोल के दाम सुरसा के मुख से भी बङे हो गये,कि एक अकेले हनुमान क्या,पूरा का पूरा देश उसमें समा गया। और यही एकमात्र जीडीपी ग्रोथ का जरिया बन गया। राम मंदिर विवाद से उच्चतम न्यायालय तक मुख मोङने लगा,और जो आधार प्रधानमंत्री जी के चुनाव पूर्व भाषणों में निराधार हुआ करता था,आज सर्वाधार साबित किया जा रहा है। जन्म-मृत्यु से लेकर हगने-मूतने तक में अनिवार्य आधार पता नहीं क्यों मतदाता पहचान पत्र से लिंक होने में अप्रासंगिक बना हुआ है?
मशले खुसबूदार मशाले बन कर परोसे जा रहे हैं।गौ रक्षा प्रमुख मुद्दा बनकर भी भारत मांस निर्यात में दुनियां भर में तीन नम्बर से अव्वल नम्बर पर आ गया है।सत्ता का अतिरेक किसी सांसद को सार्वजनिक रूप से किसी विमान अधिकारी को जुतियाने का हक ही नहीं दे रहा,बल्कि समूची संसद उसे औचित्यपूर्ण मानकर नियम तक बदले दिये दे रही है। सूबे के सरदार किसी महिला शिक्षिका को जनता दरबार में जलील कर उसे उसके रोजगार से न केवल मुअत्तल ही कर रहे हैं,अपितु उसे प्रेष के केमरों के सामने गरिफ्तार करने का आदेश भी थमा रहे हैं। शासन सूचना के अधिकार को बौना बनाने के लिए जनमत सर्वेक्षण में जुटा हुआ कि सूचना मांगने वाले की मृत्यु के पश्चात सूचना ही न दी जाये, ताकि अकारण मृत्यु के भय से कोई सूचना की मांग कर ही न सके। लोकपाल पास होकर भी नियुक्ति की बाट तकता रह गया,अन्ना फिर एक बार आये भी और बिना राम लीला किए,चले भी गये। पता नहीं क्यों अन्ना इस बार भरोसेमंद की जगह भयभीत नजर आये? जबकि विपक्ष में रहते गैर जरूरी जीएसटी अब राज्यसभा से बाईपास जाकर वित्त विधेयक की शक्ल में पास करा कर लागू की जा चुक कर आज बतौर नागरिकों के,अपनी बरसी मना रही है,और बतौर शासन के पहला जन्म दिन? जो अब तक तो शासन को भी बैक फायर कर रही है,और व्यापार धंधे को चौपट भी।
नोटबंदी से पहले गिनाये गये सारे कारण पचास दिन की तय अवधि को डेढ साल पीछे छौङ कर भी कोई परिणाम हासिल नहीं कर पाये। न कालाधन मिला,न घाटी में पत्थरबाजी बंद हुई,न आतंकवाद पर लगाम लगी,न जाली नोट छपने बंद हुये,न केसलेस या लेसकेस,जो भी हो,इकोनोमी हुई,तो फिर हासिल क्या हुआ,यह बताना अब भी गैर जरूरी ही साबित हुआ है,हां एक एक कर बौद्धिक सलाहकार शासन को छौङकर जाने को मुब्तिला जरूर हुये? जिन रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को अयोग्य साबित करने का पूरा पूरा प्रयास किया गया,उनको विश्व बैंक ने अपना गवर्नर बनाना अपना गौरव समझा।
पहली बार कैन्द्रीय मंत्रीमंडल का अधिकांश हिस्सा जनता की अदालत में चुनाव हारे हुए निष्ठावान व्यक्तियों से गठित हुआ है।जो केवल और केवल हां में हां मिलाते नजर आ रहा है। बाबाओं को मंत्रियों के दर्जे मिल रहे है,और फिर दरकता हुआ चौथा खम्बा मीडिया अपने खण्डहर होते महल की दीवारों से आम आदमी के अच्छे दिन की आस लगाये बैठा,किसी फिल्म स्टार के जेल जाने के औचित्य पर बहस कर रहा है,तो उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश जनता की अदालत में हाथ जौङ लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगा रहे हैं। उधर देश के प्रधानमंत्री कभी एक सौ पच्चीस करोङ परिवारों द्वारा गैस सब्सिडी छौङने की लफ्फाजी करने को व्यस्त है,तो कभी ग्यारहवीं सदी के गुरू गोरखनाथ,चौदहवीं सदी के संत कबीर और पन्द्रहवीं सदी के गुरु नानक देव की धर्म संसद होने का इतिहास गढने में,उस पर तुर्रा यह कि किसी पुर्ण कालिक वित्त मंत्री की गैर हाजरी में भारतीय रुपया डॉलर के सामने किलो के भाव मिलने की गति को प्राप्त हो चुका है,लेकिन उसकी जवाबदेही के लिए कोई सामने ही नहीं है। हम सब यह बखूबी जानने लगे हैं कि अच्छे दिन का नारा भी कोई नारा नहीं था, केवल मात्र एक जुमला ही था...अस्तु।
विनोद दाधीच"वीनू"
सूरत
Tuesday 26 June 2018
आपातकाल - घोषित ओर अघोषित
भारत में अघौषित आपातकाल २०१४ के जून महीने से अब तक लगातार चल रहा है। लोकतंत्र का तोता खुल्ला तो है,लेकिन उङ नहीं सकता है,यहां तक की हिल डुल भी नहीं सकता है। उसके पंजे रोड से बांध दिये हुये है। यह सब जाहिरा तौर पर नहीं किया जा रहा,बल्कि मोब लिंचिंग( भीङ द्वारा हिंसा)शोशल और मैन मीडिया पर ट्रोल,विरोध करने पर हत्या( गौरी लंकेश)धमकी वाले फोन जेसे हथकंडो द्वारा अंजाम दिया जा रहा है। प्रेष तब बिल्कुल बेन था,तो अब भयभीत कर दिया गया हुआ है। ७४५ करोङ किसी बैंक में चार दिन में जमा हुये,यह बात खबर नहीं बनती,इसकी ऐवज में गुलाम नबी आजाद का बयान या सैफूद्दीन सोज की किताब चेनलो की बहस का मुद्दा बनती है।
जाहिरा आपातकाल को नागरिक निपट सकते है। उन्हे पता है कि संविधानिक मर्यादा में कहां तक विरोध करना है,लेकिन अघौषित आपातकाल में आपको पता ही नहीं होता कि कब आपको भीङ द्वारा निपटा दिया जायेगा। घौषित आपातकाल में देश की एकता अखंडता को अक्षुण रक्खा गया,जबकि अघौषित आपातकाल में देश का सामाजिक ताना बाना जाति धर्म सम्प्रदाय के नाम पर छिन्न भिन्न कर दिया गया है। अब तो लोकतंत्र अमर रहे,तक के नारे लगने लग गये। जबकि किसी के अमर हो जाने का नारा उसकी मृत्यु के बाद लगाया जाता है।
कुल जमा वर्तमान काल की परिस्थितियाँ लोकतंत्र तो किसी भी सूरत में नहीं कही जा सकती है...
अस्तु।
लेखक - विनोद दाधिच के स्वतंत्र विचार है सभी सहमत हो जरूरी नहीं