Saturday 1 September 2018

चिंतन प्रवाह 254 - बनेचन्द मालू

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          चिन्तन प्रवाह (२५४)
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              सोच का फर्क
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     कोई कहता है फलां ने मुझे
     धोखा दिया, मुझे दुःख हुआ।
   वही वाकिया दूसरे के साथ भी     
                    हुआ,
      उसके साथ भी दगा हुआ।
कहा जो होना था हुआ, वह दुःखी
                  नहीं हुआ।
   क्योंकि उसने सोच बदल लिया।

  उसकी सोच है बिलकुल सही।
   दुःख  इसलिए होता है क्योंकि 
  हम मान कर चलते हैं हमारे साथ
          अच्छा ही अच्छा होगा,
    और वह वश की बात नहीं ।
  इसलिए जब कुछ बुरा होता है
      तो मन में कुछ बाकी नहीं।

  तो विश्लेषण करें,दुःख इसलिए
नहीं हुआ कि हमारे साथ हुआ दगा।
  दुःख इसलिए हुआ कि हम मान
                कर चलते हैं,
   हमारे साथ कभी बुरा नहीं होगा।

      यहीं हम भूल करते हैं।
हम ऐसी दुनिया नहीं बना सकते,
                जहाँ
हमें कोई चोट न पहुँचा सके।
  इस जगत में हरेक के साथ अच्छा
       बुरा कर्मानुसार सब होगा।

हमें हमारी सोच को स्वीकारात्मक
         बना कर रखना होगा।
   यदि हम प्रभावित हो कर यूं ही
           विचलित होते रहें,
       तो जीवन की नौका यूं ही
               डगमगती रहेगी।
कभी इससे,कभी उससे चोट खाती
                    रहेगी।

यह सोच बदलें, आत्मबोध करें  कि
   ‘कभी जब बुरा होता है तो वह
               संयोग होता है।    
उसकी अनुभूति की आग मुझे नहीं
              जला सकती    
    परिस्थितियाँ मुझे नहीं हिला
                  सकती।’

यही सकारात्मक सोच जीवन का
            सच्चा आधार है।
  जम जाए यह गहन, तो फिर मन
            विचलित नहीं होगा,
  हर परिस्थिति में आनंद अपार है।

      हजारों गुलाब हैं राहों में,
      पर काँटे भी हैं बे हिसाब।
       इसी का नाम है जिन्दगी,
          चलते रहिए जनाब।

••••••••••••••• बनेचन्द मालू
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