Tuesday 5 December 2017

नजरिया---- वीनू गौतम

एक होती है सम्भावना और एक होती है धारणा। राजनीति इन्ही दो अवधारणाओं के बीच का खेल होती है। २०१४ की शिकस्त के बाद लगातार साढे तीन साल तक जनमानस के बीच कांग्रेस के विरूद्ध की धारणा बनी रही। उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने हर बनती कौशिस सम्भावनाओं को तलाशने का काम जारी रखा। उत्तरप्रदेश में युवा समाजवादी अखिलेश यादव का छौटा भाई बनना तक मंजूर किया,लेकिन जनता ने फिर भी लोकसभा का अपना निर्णय दोहराते हुये कमल की झोली वोटो से भर दी। छिटपुट उपचुनाव और स्थानीय निकाय चुनाव की जीत राहुल गांधी के उत्साह को बरकरार रखे रही। पिछले छ महीने से उन्होने नयी सम्भावना की तलाश में अपनी परिपक्वता दिखाई और अपने सबसे विस्वत बेदाग चरित्र वाले सिपहसालार राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत को गुजरात के चुनावी समर में पर्यवेक्षक के रूप में उतारा।
अशोक जी का बेदाग चरित्र और स्वच्छ छवि के साथ उनका किया राजस्थान का विकास कार्य गुजराती जनमानस के दिल में जगह बनाने लगा। उनका निरंतर लोगों से रूबरू मिलना और उनकी समस्यायें समझना एक और जहां सकारात्मक धारणा निर्माण में काम कर रहा था,वहीं भाजपा नेताओं का जनता से निरंतर दूरी बनाये रखना राख के ढेर में छुपी चिंगारी को सुलगा रहा था। गुजरात के स्थानीय क्षत्रप केवल और केवल मोदी जी और अमित शाह जी पर निर्भर होते गये।
पाटीदार आंदोलन और उनके समाज पर शासन का कथित दमन जहां एक ओर पाटीदार समाज को भाजपा के विरोध में संगठित करता गया,वहीं ऊना की दलीत उत्पीङन की घटना ने आग में घी का काम किया और भाजपा के विरूद्ध दलित समुदाय भी लामबंद हो गया। तीन युवा गैर राजनैतिक चेहरों ने भाजपा के किले की मजबूत नींव में सुराख करने का काम कर दिया।

लगातार बाईस बरस तक केवल सङक और पुल निर्माण से इतर न सरकारी शिक्षण संस्थाओं का निर्माण किया गया,न स्वास्थ्य संस्थाओ का? निजी अस्पतालों और स्कूल कालेजों की मोटी फीस ने आम आदमी की कमर तौङ कर रख दी। जहां किसान एक और समर्थन मुल्य बढोतरी के लिए संघर्ष करता नजर आया,वहीं युवा अपनी बढती बेरोजगारी से त्रस्त होकर हीन भावना का शिकार होने लगा। नतीजतन बेतरतीब विज्ञापनी विकास की कलयी दिन पर दिन जमीनी धरातल पर खुलती गयी। बेशक एक भयपूर्ण वातावरण के निर्माण में भाजपा सफल रही और आम आदमी कुछ भी शासन विरूद्ध बोलने से कतराता रहा।
लेकिन कोढ में खाज का काम केन्द्र सरकार के दो फैसलों ने किया। पहले लगभग आठ नो महीने नोटबंदी की चोट से लोग ठीक ठाक उबर भी नहीं पाये थे कि जीएसटी का आना सारी घरेलू अर्थ व्यवस्था को तार तार कर गया। घटते रोजगार के साधन और बढती मंहगाई ने लोगों को दो गुना त्रस्त किया,क्योंकि नोटबंदी में घरेलू महिलाओं की सारी बचत,जो कि उनको खराब स्तिथि में काम आती थी,सरकार ने पहले ही बैंको में धरा ली थी। इसका कुल जमा निष्कर्ष धीरे धीरे मोदी विरोधी धारणा के निर्माण में परिलक्षित हुआ। इस चुनाव में महिलायें खासतौर से भाजपा के विरूद्ध मतदान करेगी,ऐसा मैरा आकलन है।

नवम्बर के आखरी सप्ताह तक मुख्य इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जहां मोदी पक्ष की हवा में जुटा हुआ था। दिसंबर के पहले सप्ताह में अपनी अवधारणा से पीछे खिसकता दिखाई देने लगा है। अब वह भी गुजरात में कांग्रेस और भाजपा के बीच में बराबर की टक्कर मान दोनो को ४३-४३ फीसद मत मिलने का अनुमान करने लगा है,हालांकि शीटें मिलने का अनुमान अभी भी उसका दस शीट भाजपा के पक्ष में अधिक है। इसकी वजह वह साफ साफ नहीं बता रहा। कुल जमा मैरे नजरिये से गुजरात का इस बार का चुनाव अप्रत्याशित नतीजे लेकर आयेगा,जो केन्द्र सरकार में भी भारी फेर बदल करने वाला होगा।
यदि भाजपा जीती तो मोदी और अधिक मुखर होकर उभरेंगे,और अगर हार हुई,तो पार्टी के भीतर से उठ रही शौरी-सिन्हा जेसी छौटी छौटी सुगबुगाहट बङे दावानल का रूप ले सकती है। फिलहाल मैरा तो यही नजरिया है,कि इस चुनाव में ऊंट कांग्रेस की करवट बैठेगा...
अस्तु
वीनू गौतम
८८४९६७१२९३

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