Wednesday 13 December 2017

गुजरात चुनाव पूर्व आकलन

एक होता है मौका। दो अक्षर का छौटा सा शब्द,लेकिन अपने भीतर असीमित संभावनायें लिए हुये होता है। इस देश ने १९६९ में एक गूंगी गुङिया को मौका दिया। मात्र दो ही बरस में उन्होने दुनियां का भूगोल बदल कर पाकिस्तान के दो मुल्क बना दिये,लेकिन लोगों द्वारा उनको साक्षात दुर्गा का रूप कहा जाना उनके भीतर अंहकार पैदा कर गया,और उसी अहम की क्षुदा आपूर्ति में श्रीमती इंदिरा गांधी ने १९७५ में देश की अदालत के फैसले के विरूद्ध जाकर आपातकाल लागू कर दिया। नतीजतन इंदिरा इज इंडिया,इंडिया इज इंदिरा का माहोल १९७७ में जमीनी धरातल सूंघ गया और न केवल कांग्रेस पार्टी की ही हार हुई,अपितु स्वयं इंदिरा जी भी अपना चुनाव हार गयी। 

१९८० में इंदिरा जी की वापसी संयुक्त विपक्ष से बनी जनता पार्टी के नेताओं की शिर फुट्टौवल का नतीजा थी। इस बार इंदिरा जी और अधिक मुखर होकर उभरी। उन्होंने कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह व्यक्ति केन्द्रित कर दिया। धीरे धीरे राज्यों के एक एक क्षत्रफ को बोना बनाया गया,और राज्य भी केन्द्र से ही चलाये जाने लगे। उनकी इसी परिपाठी को उनके सूपुत्र राजीव गांधी ने बदस्तूर जारी रखा। नतीजतन कांग्रेस लोगों के दिलों दिमाग से उतरती चली गयी। राजीव के बाद कांग्रेस कभी भी पूर्ण बहुमत से सरकार में नहीं आ पाई,चाहे वह नेहरू गांधी परिवार की देखरेख में मनमोहन सरकार रही हो,अथवा नरसिम्मा राव जी के नैतृत्व वाली सरकार,अब तो वह मात्र ४४ लोकसभा आसनों पर सिमट कर मुख्य विपक्षी दल तक की भूमिका से बाहर है।
कांग्रेस के भृष्टाचार के विरोध में अन्ना हजारे के नैतृत्व में दो साल का लम्बा आंदोलन चला,जिसकी परिणीति कांग्रेस के पतन से हुई,हालांकि अंतिम क्षणो में उन्होंने अन्ना की शर्त मानकर लोकपाल कानून पास भी कर दिया था। उस आंदोलन से उपजी कांग्रेस विरोधी फसल को मोदी जी के नैतृत्व में भाजपा ने काटा। यह भाजपा और संघ के लिए स्वर्णिम मौका था कि जो काम गठबंधन की मजबूरीवश अटल जी नहीं कर पाये थे,यथा देश की नदियों को जौङना,गंगा जमूना की पूर्ण सफाई,किसानो के हितो के कानून,पुलिस कानून सुधार,चुनाव सुधार,पङौसी पाकिस्तान से साफ रिस्ते इत्यादि इत्यादि,उन्हे पूर्ण बहुमत की बदौलत पूरा अंजाम दे सके। लेकिन मोदी जी ने इंदिरा जी वाला रास्ता ही अख्तियार किया,और अपने आप को ब्रांड बनाने में सारी उर्जा लगानी शुरू की। पूर्व की सरकारी योजनाओं को नाम बदल बदल कर पुरानी बोतल में नयी शराब डालने का काम किया,एवं सबसे बङी गलती कि खुद को ब्रांड बनाने में वे देश के अब तक हुये विकास को ही सिरे से खारिज करते दिखे। इसमें वे कुछ हद और वक्ती तौर पर कामयाब भी नजर आये,लेकिन‌ पानी के बुलबुले की उम्र बहुत छौटी होती है। मात्र दो साल के भीतर भीतर उनका नब्बे डिग्री से चढता ग्राफ उसी गति से गिरते हुये न्युटन के सिद्धांत को सही साबित करने लगा कि जो चीज जिस गति से जाती है,वह लौटती भी उसी गति से ही है।
गुजरात उनकी प्रयोगशाला थी। वहीं से उन्होने विकास और हिन्दुत्व का घालमेल शुरू किया था। बारह बरस तक वह सफलता पूर्वक कामयाबी से चला भी,लेकिन उनके केन्द्र में जाते ही,गुजरात डगमगाने लगा,और उनके बाद एक के बाद दूसरे मुख्यमंत्री को बैठना पङ गया। अब वर्तमान स्तिथि सामाजिक,राजनैतिक, शैक्षणिक,व्यापरिक,जातिगत आदि हर पहलू से उनके विरूद्ध बन गयी है। वर्तमान चुनाव मोदी ही नहीं पूरी भाजपा के लिए कठिन परीक्षा वाला है। उनका संख्याबल कम होना ही पार्टी के भीतर खलबली मचाने वाला होगा,एवं यदि सीधे सीधे हार हो गयी तो उनके नैतृत्व पर बहुत बङा सवालिया निशान खङे कर देगा,जो भाजपा में एक बङी बगावत को जन्म दे सकता है,जिसका संकेत महाराष्ट्र से एक सांसद द्वारा पार्टी और संसद सदस्यता से इस्तीफा देने से मिलने भी लगा है।
कुल जमा गुजरात विधानसभा का इस बार का चुनाव पूरे भारत में बङा परिवर्तन लाने वाला होगा। यदि मोदी यह चुनाव जीतते है तो और अधिक मुखर होकर उभरेंगे। उनकी‌ मुखरता निरंकुसता की हद तक जा सकती है,क्योंकि स्वभाव से वे जिद्दी भी है,थोङे सनकी से भी। जो उनके दिल में आता है,वे बिना कोई आगा पीछा सोचे समझे उसे कर गुजरते है। यदि उनकी हार हुई तो भाजपा आने वाले आठ राज्यों और डेढ साल बाद आम चुनाव में एक बङी हार का सामना कर सकती है,क्योंकि स्थानीय क्षत्रपों का कद मोदी पहले ही बौना कर चुके है,गुजरात की हार उनकी लोकप्रियता को गहरा धक्का पहुंचायेगी,जो कहीं न कहीं शोशल मीडिया के उनको भक्तों को निराश करेगी,जो उनके हर गलत सही कदम का आंख मूंद प्रचार करते है।
गुजरात की चूंटणी के नतीजे १८ दिशम्बर को कालजयी तारीख बनाने वाले होंगे,यकीनन...
अस्तु।
विनोद दाधीच
सूरत
८८४९६७१२९३

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