Saturday 19 May 2018

ये भाजपा है,जब-जब भी लड़खड़ाई तब वापस दुगुने उत्साह से खड़ी हुई- गणपत भंसाली


ये भाजपा है,जब-जब भी लड़खड़ाई तब वापस दुगुने उत्साह से खड़ी हुई।अतः सत्ता न पाने के गम से उभरिये व 40 से बढ़ कर 104 सीटों तक पहुंच जाने के प्रयासों की अनुशंसा करिये..


फ्लोर पर बहुमत साबित किए बिना ही येद्दयुरप्पा ने अपना स्तीफा दे दे दिया। बहुमत के आवश्यक 113 के आंकड़े के के समक्ष उनकी पोटली में 104 सीटें ही थी। लेकिन सत्ता के शिखर पर पहुंचने हेतु संख्या बल ही महत्वपूर्ण होता हैं। जब येद्दयुरप्पा ने सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत करते हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो इस उम्मीद के बल पर ली थी कि उन्हें कुछ विधायकों का समर्थन मिल जाएगा। अब फेसबुक पर ज्ञान बांटने वाले तथा वॉट्सऐप-वॉट्सऐप खेलने वाले तथाकथित ज्ञानी "भाजपा की नैतिक हार" "कॉंग्रेस की नैतिक जीत" "अनैतिक तरीकों से सत्ता हासिल करने के मंसूबों पर पानी फिरा" "कहां गया 56 इंच का सीना?" "नही चली चाणक्य की चाणक्य गिरी" "ढाई दिन के मुख्यमंत्री" आदि आदि मेसेज वायरल कर अपनी भड़ांस निकालेंगे। तथा मोदी व भाजपा विरोधी तरह तरह से जहर उगलेंगे। बहरहाल राजनीति सम्भावनाओं का खेल हैं। लेकिन क्या पर्याप्त संख्या बल न होने पर प्रयास नही करने चाहिए ? क्या इस तरह की कोशिशें पहली बार हुई है ? आख़िर इसमें गलत था ही क्या ? येद्दयुरप्पा बहुमत के निकट आते-आते रह गए तो उन्होंने इस उम्मीद पर एक प्रयास मात्र ही तो किया कि कांग्रेस-JDU के कुछ असंतुष्ट उन्हें समर्थन दे देंगे। बहरहाल नही मिला समर्थन और येद्दयुरप्पा ने सौंप दिया अपना स्तीफा। सम्भव है कि स्वयं BJP से जुड़े लोग भी इस मसले में कर्नाटका प्रदेश के भाजपा नेताओं व केंद्रीय नेतृत्व के इस निर्णय को बड़ी गलती व विवेकहीन फैसला मानते हुए मन ही मन मे कोस भी रहे होंगे ? लेकिन फर्ज कीजिये, भाजपा की यह रणनीति अगर सफल हो जाती तो हम लोग ही कसीदे पढ़ना शुरू कर देते। कि वाह भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की कितनी गजब की रणनीति हैं कि हारी हुई बाजी जीत ली। बहरहाल कर्नाटका के जिन भाजपा नेताओं ने पिछले 5 वर्षों में एड़ी से चोटी तक जोर लगा कर संघर्ष किया। जिन्होंने कॉंग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्दरमैया की गलत नीतियों का पुरजोर विरोध कर जनता में अपनी पैठ बनाई। औऱ यही वजह हैं कि भाजपा दक्षिण भारत मे सत्ता के निकट पहुंच पाई। यह इस देश के गौरवशाली प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अथाह मेहनत व भाजपा के समर्पित अध्यक्ष श्री अमित शाह की बेजोड़ रणनीति तथा कर्नाटका के BJP कार्यकर्ताओं का प्रेरक प्रयास व वहां के सजग मतदाताओं का भाजपा के प्रति अटूट विश्वास का ही प्रतिफल था कि 40 सीटों वाली भाजपा वर्ष 2018 के चुनावों में 104 तक पहुंच पाई । सीटों में इतनी गजब की बढ़ोतरी हुई तो राज्यपाल के समक्ष बड़े दल होने के नाते उन्होंने अविलम्ब अपना दावा भी पेश कर दिया। राज्यपाल ने उनको बड़ा दल होने के नाते अपना बहुमत साबित करने का 15 दिनों का समय भी दे दिया। जैसा कि अतीत में विभिन्न राज्यों में ऐसी स्थिति में राज्यपाल इस तरह की भूमिका निभाते ही रहे हैं। (अब देने को तो तर्कबाज गोआ, मेघालय आदि का उदाहरण भी दे डालेंगे कि फिर वहां बड़े दल के नाते राज्यपालों ने कॉंग्रेस को आमन्त्रित क्यों नही किया ? तो यह सर्वविदित हैं कि वहां कॉन्ग्रेस न तो अपना नेता चुन पाई थी और ना ही उसने दावा प्रस्तुत करने की पहल की थी, अगर कॉंग्रेस के पास आज की तरह संख्या होती तो फ्लोर पर हरा देती भाजपा को) खेर! कर्नाटका में राज्यपाल के निर्देश पश्चात भाजपा अपना बहुमत साबित करने के प्रयासों में जुट गई। लेकिन इसी बीच कांग्रेस द्वारा राज्यपाल के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट की पटल पर चुनोती स्वरूप रख दिया गया और कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को पलट कर 15 दिन की बजाय 28 घण्टे की मोहलत में बदल दिया। यह उल्लेखनीय हैं कि किसी भी भाजपा नेता ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का विरोध नही किया, उल्टा उस फैसले को विनम्रता से शिरोधार्य किया। वो कांग्रेस जिसने पिछले 70 सालों में राज्यपालों को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया, वो ही कांग्रेस अब राज्यपाल के मौलिक तथा संविधान सम्मत अधिकारों को ही कोर्ट में चुनोती देने लगी ? राज्यपाल श्री वजू भाई वाला द्वारा मनोनीत प्रोटेम स्पीकर केजी बोपैया के चयन का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा दिया गया। बहरहाल सुप्रीमकोर्ट ने राज्यपाल के हर निर्णय में हस्तपेक्ष करना उचित नही समझा व उस निर्णय को यथावत रखा औऱ कॉंग्रेस को इस मामले में मुंह की खानी पड़ी। आखिर वो घड़ी भी आ ही गई, फ्लोर पर बहुमत साबित करने की। लेकिन जैसा कि यह सर्वविदित है कि राजनीति में संख्या बल सर्वोपरि होता हैं। श्री येद्दयुरप्पा ने अपने उदबोधन में भावुक होते हुए अपने मन की बात कही व अगले चुनावों में जनता के समक्ष जाकर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने का अपना मन्तव्य रखा,व पर्याप्त बहुमत न जुटा पाने से उन्होंने मुख्यमंत्री पद से अविलम्ब अपना स्तीफा दे दिया। इस तमाम घटनाक्रम में कॉंग्रेस के झूठे प्रचार की हरसम्भव भर्त्सना की जानी चाहिए कि उसने बिना किसी सबूत के, बिना किसी आधार के भाजपा पर 100-100 करोड़ में विधायक खरीदने के आरोप कैसे लगा दिए? फिर वो झूठ 15 करोड़ की राशि पर अटक गया। तथा कॉंग्रेस के MLA का अपहरण तक करने का आरोप लगा दिए। चलिए अब तो आप की सरकार तक बन गई। अब पेश कीजिए वे तमाम सबूत जिसमें 100-100 करोड़ देने की पेशकश की गई। आखिर किसे की गई पेशकश ? औऱ किसने इस ऑफर को ठुकराया ? एक-एक तथ्य को सिलसिले वार सामने रखिये। मात्र "भेड़िया आया, भेड़िया आया" चिल्लाने से कुछ नही होगा। प्रश्न कॉंग्रेस से पूछा जाना चाहिए कि आपने जोड़तोड़ से सरकार बनाने हेतु मात्र 37 विधायकों की संख्या बल वाले जिस अनुभव हीन नेता को मुख्यमंत्री बनाया है, क्या वो भ्रष्टाचार व अनैतिकता की श्रेणी में नही आता ? बहरहाल यह बहस का मुद्दा नही। क्योंकि जो जीता वो सिकन्दर। लेकिन हमें यह नही भूलना चाहिए कि कर्नाटका की जनता ने कॉन्ग्रेस को स्पष्ट रूप से नकारा हैं। वो कॉंग्रेस जिसकी सरकार के आधे के करीब संख्या में मिनिस्टर बुरी तरह हार जाते हैं। वो कॉंग्रेस जिसकी सरकार का नायक यानी मुख्यमंत्री सिद्दरमैया एक सीट पर 30 हजार वोट जितने बड़े मार्जिन से पराजय का सामना कर अपने राजनैतिक केरियर की फजीती करा देते हैं व दूसरी सीट पर महज 1700 वोटों के नाममात्र मार्जिन से विजयी होकर लुढ़कते-लुढ़कते बच पाते हैं, तो कहां की व कैसी विजय ? ये सर्व विदित है कि JDS प्रवक्ता कुंवर दानिश अली विभिन्न टी वी न्यूज चैनलों पर चिल्ला-चिल्ला कर यह कहते नजर आते थे कि हमारी भाजपा व कॉन्ग्रेस से समान दूरी हैं। तो फिर ये बेमेल समझौता क्यों ? कुछ भी हो कर्नाटका की जनता के साथ यह खुली कुठाराघात ही हैं। ओवैसी जैसे भड़काऊ बयान देकर सम्प्रदाय का जहर उगलने वाले नेता के चुनाव प्रचार से जीते JDS नेताओं के नेतृत्व पर कर्नाटका के वोटरों ने मुहर कत्तई नही लगाई थी। वो JDS जिसके घोषणा पत्र में जिन्ना के सिद्धांतों से पोषक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसी यूनिवर्सिटी कर्नाटका में बनाने का वादा किया गया उस नेतृत्व को कर्नाटका के वोटरों ने नही स्वीकारा था। औऱ दूसरे दलों की सरकारों को अस्थिर करने का तो कॉंग्रेस का विवादित इतिहास रहा है। वो कोंग्रेस जिसने चौधरी चरण सिंह जैसे किसान नेता के साथ छल किया। वो कॉंग्रेस जो उठापटक कर सत्ता हासिल करना चाहती है तो क्या कुमारस्वामी को चैन से सरकार चलाने देगी ? खेर! जो BJP समर्थक व शुभ चिंतक भाजपा को कर्नाटका में सरकार बनाने के असफल प्रयासों हेतु मन ही मन मे कोस रहे होंगे तो मेरा उनसे यही निवेदन हैं कि राजनीति में ऐसी रिस्क अतीत में भी ली जाती रही हैं, वर्तमान में आज के दिन कर्नाटका में भी ली गईं हैं, और भविष्य में भी ऐसी सम्भावनाओं से कत्तई इंकार नही किया जा सकता हैं। याद रखिये ये शेरदिल नरेंद्र मोदी व दूरदर्शी नेता अमित शाह के बेजोड़ नेतृत्व की भाजपा हैं। जो पराजय में मातम नही मनाती, बल्कि उससे सीख लेती हैं। स्मरण करिए दिल्ली के वो चुनाव परिणाम जिसमें आम आदमी पार्टी की प्रचंड विजय व हमारी पार्टी की बुरी तरह पराजय से देश मे इस BJP के प्रति बेहद नकारात्मक प्रचार हुआ था कि ये पार्टी तो अब गई रसातल में ? अब ये किसी राज्य में सत्ता की चौखट नही छू सकेगी ? लेकिन उसके पश्चात उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों में उसी जोश-खरोश के साथ इसी घायल भाजपा ने सम्भल कर विजय का परचम लहराया हैं। उसके बाद उत्तरप्रदेश के लोकसभा उप चुनाव में गोरखपुर व फूलपुर की सीटें हारी तो उससे सबक लेकर कर्नाटका में पुरजोर मेहनत कर 40 सीटों वाली पार्टी 104 सीटों पर पहुंच गई। ये वो दक्षिण भारत है जहां भाजपा के इक्की दुक्की सीटें जीतने पर जश्न मनाया जाता रहा हैं। में दक्षिण भारत के कर्नाटका सहित चारो प्रदेश व एक केंद्र शासित प्रदेश में बालोतरा-जसोल से टेक्सटाइल्स व्यवसाय के सिलसिले में बतौर एक सेल्समेन के रूप में कई वर्षों तक यात्रा कर चुका हूं, व यह जान चुका हूं कि दक्षिणी राज्य भाजपा के परम्परागत गढ़ नही हैं। सिर्फ कर्नाटका ही एक मात्र अपवाद हैं कि जहां भाजपा के येद्दयुरप्पा तीन बार मुख्यमंत्री पद तक पहुंच पाए हैं। अतः कर्नाटका में सत्ता हासिल नही होने के गम से उभरिये व 40 से 104 सीटों तक पहुंचने की सफलता की सराहना करिये। अगर इसके बावजूद आपको ये पराजय रह-रह कर विचलित कर रही है तो
शायर अलामा इक़बाल की इन पंक्तियों पर गौर फरमाइए कि....
गिरते है शह सवार मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल पर चलें।
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मौलिक विचार
लेखक-गणपत भंसाली
राष्ट्रीय प्रवक्ता एंव महासचिव
नरेंद्र मोदी विचार मंच

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